प्रिय पाठकगण, हमारा सप्रेम नमस्कार। आशा करते है आप सब सकुशल और मंगल होंगे और अपनी अपनी जिंदगीओं के धूप छांव तथा हर प्रकार के लम्हों को सराहनीय तरीके से व्यतीत कर रहे होंगे। यूं तो आजकल पत्रों का चलन नहीं रहा पर एक वक़्त था जब ये पत्र चिट्ठी ख़त और जाने किन किन नामों से बुलाए जाने वाले कागज़ के टुकड़े हमारे एहसासों, सवालातों, ख्यालातों, जज़्बातों और दिल में छुपी अनकही अनसुनी बातों को एक अल्फ़ाज़ देते थे, इन्हें एक आवाज़ देते थे एक जरिया थे इनको अपने मुकाम तक पहुंचाने का। हम भी इन्हीं उम्मीदों के साथ एक पत्र आप सबके नाम साझा कर रहे है। एक कोशिश कर रहे है अपनी खामोशियों को एक आवाज़ की शक्ल देकर आप तक पहुंचाने की। खामोशियों की भी अपनी अलग दुनिया है अपनी अलग विडंबना है। खामोशियां वो शब्द है जो दिल के दायरों में छुपे होते है, इनकी अपनी आवाज़ नहीं होती। इन खामोशियों को आवाज़ हमारे अल्फ़ाज़ देते है, इन्हें अपनी पहचान देते है। वो अल्फ़ाज़ जो जुबां पे तो नहीं आ पाते लेकिन दिल की कलम से पन्नों पर कैद हो जाते है। हमारे एहसास, जज़्बात और जिंदगी के छोटे बड़े, हस्ते रोते लम्हें इनमें रंग भरते ह
मैं तुम्हें अपनी सबसे अच्छी कविता के रूप में अपनी हाथ की रेखाओं पर इंकित करना चाहता हूं, वो जो कल्पनाओं से भी परे हो जिसे आज तक किसी ने भी नहीं गढ़ा हो एक ऐसा काव्य जो संवेदनाओं और संभावनाओं से तुम्हारे और मेरे बीच बंधी प्रेम की डोर को सींचती हो, उनकी जड़ों को गहराई देती हो। वो कविता जो मेरे अधूरे ख्वाबों को तुम्हारे ख्वाबों से बांध कर उन्हें संपूर्णता का बोध देती हो। जो मेरे प्रतिबिंब को तुम्हारे बिंब से जोड़ कर एक आकाश को जन्म देगी, जो हम दोनों को आशियां देगा जहां आशा, उम्मीद और विश्वास की ईटो को एक एक कर जोड़ते जायेंगे हम एक घर बनायेंगे तुम्हारी हंसी से उसमें रंग भर जायेंगे, चटक रंग! जिससे रंगने पर हर एक दीवार गुनगुनाएगी वही कविता जो मैं लिखता रहूंगा रोज थोड़ा थोड़ा, तुम्हारी हथेलियों पर जहां खनक रहे होंगे कंगन तुम्हें देखते हुए। तुम्हारी कोरी पीठ पर अपनी उंगलियों से एक एक शब्द कुरेदते हुए। तुम्हारे पांवों पर जहां पाजेब छनकते हुए उन्हें सुरों से बांध रहे होंगे। तुम्हारे माथे पर अपने होठों से जहां मेरे पूरे जीवन का होगा सार, एक बिंदु पर के